स्ट्राबेरी शीतोष्ण जलवायु का पौधा है । भारत वर्ष में स्ट्राबेरी की खेती शीतोष्ण एवं समशीतोष्ण दोनों भागों में की जाती है । हिमाचल में सबसे अधिक क्षेत्रफल यानि बड़े पैमाने पर खेती होती है । उ.प्र.में स्ट्राबेरी सहारनपुर , हरिद्वार, मुजफ्फरनगर, मेरठ , उधम सिंह नगर व देहरादून के पर्वतीय अंचलों में नैनीताल जिले में खप्रद , व ज्योलीकोट क्षेत्र तथा अल्मोड़ा जिले में प्रमुख रूप से भी की जा रही है । स्ट्राबेरी की आज कल काफी लोकप्रिय हो रही है । स्ट्राबेरी की खेती इसके लाल, गुलाबी , सुगन्धित व पौष्टिक फलों के लिए की जाती है साथ ही इसमें अनीमिया व क्लोरोसिस आदि बीमारियों की प्रतिरोधी क्षमता भी है इसे नियमित खाने से इन बीमारियों पर काबू पाया जा सकता है। स्ट्राबेरी का उपयोग जैम , जैली व आइसक्रीम में भी किया जाता है । इसके १०० ग्राम फल में ८७.८ पानी , ०.७ %प्रोटीन , ०.२ % वसा, ०.४ % खनिज लवण , १.१ % रेशा , १.८ % कार्बोहाईड्रेट , ०.०३ % कैल्शियम , ० .०३ % फास्फोरस , और १.८ % आयरन पाया जाता है । इसके अलावा इसमें ३० मी.ग्रा.निकोटिनीक एसिड , ५२मि.ली ग्राम विटामिन सी , और ०.०२ % कैलोरी उर्जा मिलती है । स्ट्राबेरी की भण्डारण क्षमता बहुत कम है अत: इसकी खेती करने से पूर्व तोड़ने के बाद शीघ्र , अतिशीघ्र बाजार व उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के साधन सुनिश्चित कर लेने चाहिए । चूँकि तुड़ाई के बाद फल को यदि अधिक समय तक रखा जाए तो वह ख़राब हो जाता है । स्ट्राबेरी की खेती उन क्षेत्रों के छोटे किसानों के लिए अत्यधिक लाभकारी है । जिन क्षेत्रों में परिवहन की सुविधा उपलब्ध है वास्तव में स्ट्राबेरी की खेती में यदि थोडा सा परिश्रम कर लिया जाए तो कम जमीन में भी ज्यादा लाभ लिया जा सकता है ।
जलवायु और मिटटी सम्बन्धी आवश्यकता :-
स्ट्राबेरी कि खेती समशीतोष्ण एवं शीतोष्ण जलवायु में समुद्र सतह से १८०० मीटर तक अच्छी प्रकार से कि जा सकती है जहाँ ठण्ड के मौसम में अधिक ठण्ड पड़ती है तथा फ़रवरी, मार्च में गर्मी आरम्भ हो जाती है परन्तु ग्रीष्म ऋतू में अधिक गर्मी न पड़ती हो ५-३५ सेंटी ग्रेड तक अब कुछ नई विकसित संकर किस्में तापमान को ज्यादा सहन कर सकती है। जिन्हे मैदानी भागों में आसानी से उगाया जा सकता है ।
भूमि कि तैयारी :-
स्ट्राबेरी कि खेती उसर एवं मटियार भूमि को छोड़कर सभी प्रकार कि भूमि में कि जा सकती है । किन्तु जीवांश युक्त हलकी दोमट भूमि जिसमे जल निकास कि समुचित व्यवस्था तथा जिसका पी.एच.मान.०.५ -८.५ के मध्य हो उत्तम मानी जाती है ।
प्रजातियाँ :-
भारत वर्ष में उगाई जाने वाली स्ट्राबेरी कि अधिकांश किस्मे आयातित है इसकी प्रचलित प्रजातियाँ चंदेलर, स्वीट चार्ली, ज्योलीकोट , रेड्कोट, ई.सी.३६२६०२ तथा स्टील मास्ट है जबकि व्यावसायिक रूप से स्वीट चार्ली प्रजाति अच्छी साबित हुई है जिसकी उपज लगभग ७० क्विंटल से ७५ क्विंटल प्रति एकड़ तक प्राप्त कि जा सकती है , इस प्रजाति के पौधे मेसर्स विमको शीडलिंग लि.के अनुसन्धान एवं विकास केंद्र बागवाला रुद्रपुर से प्राप्त किये जा सकते है ।
भेंट कलम लगाना :-
इस तरीके में मूल वृंत , रूट स्टाक वाले पौधे , वंशज, सायन पौधे के आसपास लगाए जाते है । इस प्रक्रिया में मूलवृंत कि छाल ३-५ से.मी.कि लम्बाई तक छील ली जाती है । वंशज वृक्ष कि कि भी इतने ही भाग कि छाल छील ली जाती है । अब इन दोनों कि छिली छाल वाले स्थान से जोड़कर एक साथ बांध दिया जाता है । इसके लगभग ३०-४० दिन बाद मूलवृंत को कलम लगाए गई वंशज पौधे के ठीक ऊपर से काट देते है । लेकिन यह तरीका कठिन और खर्चीला है क्योंकि गमलों में लगाए गए मूल वृन्तों को नियमित रूप से पानी देना पड़ता है । और उनकी देखभाल भी करनी पड़ती है ।
आर्गनिक खाद :-
स्ट्राबेरी में खाद के संतुलित प्रयोग का महत्व पूर्ण स्थान है प्रति एकड़ खेत में १० - १२ टन गोबर कि सड़ी हुयी खाद बुवाई से १० - १५ दिन पहले सामान मात्रा में खेत में बिखेर कर जुताई कर खेत तैयार करना चाहिए गोबर कि खाद देने से भूमि में जल धारण कि क्षमता बढ़ जाती है इसके अतिरिक्त अंतिम जुताई से पहले २ बैग - माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट वजन ४० किलो ग्राम , २ बैग माइक्रो नीम वजन २० किलो ग्राम , २ बैग - माइक्रो भू पावर वजन १० किलो ग्राम , २ बैग - भू पावर वजन ५ ० किलो ग्राम , २ बैग सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट वजन १० किलो ग्राम इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर मिश्रण तैयार कर सामान मात्रा में खेत में बिखेर कर जुताई कर खेत तैयार कर बुवाई या रोपाई करना चाहिए , १५- २० दिन बाद ५०० मिली लीटर माइक्रो झाइम और २ किलो सुपर गोल्ड और ५ लीटर नीम का काढ़ा ४०० लीटर पानी में अच्छी तरह घोलकर मिलाकर पम्प द्वारा तर बतर कर प्रति सप्ताह या प्रति १५ - २० दिन बाद लगातार छिड़काव करते रहे इस तरह से आप भरपूर तंदरुस्त फस
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें