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द्रप्स सिंचाई
द्रप्स सिंचाई का योजना-चित्र
भारत के छिनवाल में केले की टपक सिंचाई की व्यवस्था
द्रप्स सिंचाई या 'ड्रिप इर्रिगेशन' (Drip irrigation या trickle irrigation या micro irrigation या localized irrigation), सिंचाई की एक विशेष विधि है जिसमें पानी और खाद की बचत होती है। इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बूँद-बूंद करके टपकाया जाता है। इस कार्य के लिए वाल्व, पाइप, नलियों तथा एमिटर का नेटवर्क लगाना पड़ता है। इसे 'टपक सिंचाई' या 'बूँद-बूँद सिंचाई' भी कहते हैं।
टपक या बूंद-बूंद सिंचाई एक ऐसी सिंचाई विधि है जिसमें पानी थोड़ी-थोड़ी मात्र में, कम अन्तराल पर, प्लास्टिक की नालियों द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। परम्परागत सतही सिंचाई (conventional irrigation) द्वारा जल का उचित उपयोग नहीं हो पाता, क्योंकि अधिकतर पानी, जोकि पौधों को मिलना चाहिए, जमीन में रिस कर या वाष्पीकरण द्वारा व्यर्थ चला जाता है। अतः उपलब्ध जल का सही और पूर्ण उपयोग करने के लिए एक ऐसी सिंचाई पद्धति अनिवार्य है जिसके द्वारा जल का रिसाव कम से कम हो और अधिक से अधिक पानी पौधे को उपलब्ध हो पाये।
कम दबाव और नियंत्रण के साथ सीधे फसलों की जड़ में उनकी आवश्यकतानुसार पानी देना ही टपक सिंचाई है। टपक सिंचाई के माध्यम से पौधों को उर्वरक आपूर्ति करने की प्रक्रिया फर्टिगेशन कहलाती है, जो कि पोषक तत्वों की लीचिंग व वाष्पीकरण नुकसान पर अंकुश लगाकर सही समय पर उपयुक्त फसल पोषण प्रदान करती है।
टपक सिंचाई पद्धति की मुख्य विशेषताएँ
1- पानी सीधे फसल की जड़ में दिया जाता है।
2- जड़ क्षेत्र में पानी सदैव पर्याप्त मात्र में रहता है।
3- जमीन में वायु व जल की मात्र उचित क्षमता स्थिति पर बनी रहने से फसल की वृद्धि तेज़ी से और एक समान रूप से होती है।
4- फसल को हर दिन या एक दिन छोड़कर पानी दिया जाता है।
5- पानी अत्यंत धीमी गति से दिया जाता है।
टपक सिंचाई के लाभ
1- उत्पादकता और गुणवत्ता : टपक सिंचाई में पेड़ पौधों को प्रतिदिन जरूरी मात्रा में पानी मिलता है। इससे उन पर तनाव नहीं पड़ता। फलस्वरूप फसलों की बढ़ोतरी व उत्पादन दोनों में वृद्धि होती है। टपक सिंचाई से फल, सब्जीऔर अन्य फसलों के उत्पादन में 20% से 50% तक बढ़ोतरी संभव है।
2- पानी : टपक सिंचाई द्वारा 30 से 60 प्रतिशत तक सिंचाई पानी की बचत होती है।
3- जमीन : ऊबड़-खाबड़, क्षारयुक्त, बंजर जमीन शुष्क खेती वाली, पानी के कम रिसाव वाली जमीन और अल्प वर्षा की क्षारयुक्त जमीन और समुद्र तटीय जमीन भी खेती हेतु उपयोग में लाई जा सकती है।
4- रासायनिक खाद : फर्टिगेशन से पोषकतत्व बराबर मात्र में सीधे पौधोंकी जडों में पहुंचाऐ जाते हैं, जिसकी वजह से पौधे पोषक तत्वोंका उपयुक्त इस्तेमाल कर पाते हैं तथा प्रयोग किये गए उर्वरकों में होने वाले विभिन्ननुकसान कम होते हैं, जिससे पैदावार में वृद्धि होती है। इस पद्धति द्वारा 30 से 45 प्रतिशत तकरासायनिक खाद की बचत की जा सकती है।
5- खरपतवार : टपक सिंचाई में पानी सीधे फसल की जड़ों में दिया जाता है। आस-पास की जमीन सूखी रहने से अनावश्यक खरपतवार विकसित नहीं होते। इससे जमीन के सभी पौष्टिक तत्व केवल फसल को मिलते हैं।
6- फसल में कीट व रोग का प्रभाव : टपक/इनलाइन पद्धति से पेड़-पौधों का स्वस्थ विकास होता है। जिनमें कीट तथा रोगों से लड़ने कीज्यादा क्षमता होती है। कीटनाशकों पर होने वाले खर्चे में भी कमी होती है।
7- टपक सिंचाई में होने वाला खर्च और कार्यक्षमता : टपक/इनलाइन सिंचाई पद्धति उपयोग के कार" श-जड़ के क्षेत्र को छोड़कर बाकी भाग सूखा रहने से निराई-गुड़ाई, खुदाई, कटाई आदि काम बेहतर ढंग से किये जा सकते हैं। इससे मजदूरी, समय और पैसे तीनों की बचत होती है।
टपक सिंचाई प्रणाली के घटक
टमाटर की टपक सिंचाई
टपक संयन्त्र के प्रमुख भाग निम्नानुसार हैं-
1- हेडर असेंबली
2- फिल्टर्स - हायड्रोसायक्लोन, सैंड और स्क्रीन फिल्टर्स
3- रसायन और खाद देने के साधन - व्हेंचुरी, फर्टिलाइज़र टैंक
4- मेनलाइन
5- सबमेन लाइन
6- वॉल्व
7- लेटरल लाइन (पॉलीट्यूब)
8- एमीटर्स - ऑनलाइन/इनलाइन/मिनी स्प्रिंकलर/जेट्स
हेडर असेंबली
हेडर असेंबली मतलब बाईपास, नॉन रिटर्न वॉल्व, एअर रिलीज़ वॉल्व आदि। टपक सिंचाई का दबाव और गति नियंत्रित करने के लिये बाईपास असेंब्ली का उपयोग किया जाता है।
फिल्टर
पानी में मौजूद मिट्टी के कणों, कचरा, शैवाल (काई) आदि से ड्रिपर्स के छिद्र बंद होने की संभावना रहती है। इस प्रक्रिया में स्क्रीन फिल्टर, सैंड फिल्टर, सैंडसेपरेटर, सेटलिंग टैंक आदि का समावेश होता है। पानी में रेत अथवा मिट्टी होने पर हाइड्रोसाइक्लॉन फिल्टर का उपयोग किया जाना चाहिए। पानी में शैवाल (काई), पौधों के पत्ते, लकड़ी आदि सूक्ष्म जैविक कचरा
द्रप्स सिंचाई
द्रप्स सिंचाई का योजना-चित्र
भारत के छिनवाल में केले की टपक सिंचाई की व्यवस्था
द्रप्स सिंचाई या 'ड्रिप इर्रिगेशन' (Drip irrigation या trickle irrigation या micro irrigation या localized irrigation), सिंचाई की एक विशेष विधि है जिसमें पानी और खाद की बचत होती है। इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बूँद-बूंद करके टपकाया जाता है। इस कार्य के लिए वाल्व, पाइप, नलियों तथा एमिटर का नेटवर्क लगाना पड़ता है। इसे 'टपक सिंचाई' या 'बूँद-बूँद सिंचाई' भी कहते हैं।
टपक या बूंद-बूंद सिंचाई एक ऐसी सिंचाई विधि है जिसमें पानी थोड़ी-थोड़ी मात्र में, कम अन्तराल पर, प्लास्टिक की नालियों द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। परम्परागत सतही सिंचाई (conventional irrigation) द्वारा जल का उचित उपयोग नहीं हो पाता, क्योंकि अधिकतर पानी, जोकि पौधों को मिलना चाहिए, जमीन में रिस कर या वाष्पीकरण द्वारा व्यर्थ चला जाता है। अतः उपलब्ध जल का सही और पूर्ण उपयोग करने के लिए एक ऐसी सिंचाई पद्धति अनिवार्य है जिसके द्वारा जल का रिसाव कम से कम हो और अधिक से अधिक पानी पौधे को उपलब्ध हो पाये।
कम दबाव और नियंत्रण के साथ सीधे फसलों की जड़ में उनकी आवश्यकतानुसार पानी देना ही टपक सिंचाई है। टपक सिंचाई के माध्यम से पौधों को उर्वरक आपूर्ति करने की प्रक्रिया फर्टिगेशन कहलाती है, जो कि पोषक तत्वों की लीचिंग व वाष्पीकरण नुकसान पर अंकुश लगाकर सही समय पर उपयुक्त फसल पोषण प्रदान करती है।
टपक सिंचाई पद्धति की मुख्य विशेषताएँ
1- पानी सीधे फसल की जड़ में दिया जाता है।
2- जड़ क्षेत्र में पानी सदैव पर्याप्त मात्र में रहता है।
3- जमीन में वायु व जल की मात्र उचित क्षमता स्थिति पर बनी रहने से फसल की वृद्धि तेज़ी से और एक समान रूप से होती है।
4- फसल को हर दिन या एक दिन छोड़कर पानी दिया जाता है।
5- पानी अत्यंत धीमी गति से दिया जाता है।
टपक सिंचाई के लाभ
1- उत्पादकता और गुणवत्ता : टपक सिंचाई में पेड़ पौधों को प्रतिदिन जरूरी मात्रा में पानी मिलता है। इससे उन पर तनाव नहीं पड़ता। फलस्वरूप फसलों की बढ़ोतरी व उत्पादन दोनों में वृद्धि होती है। टपक सिंचाई से फल, सब्जीऔर अन्य फसलों के उत्पादन में 20% से 50% तक बढ़ोतरी संभव है।
2- पानी : टपक सिंचाई द्वारा 30 से 60 प्रतिशत तक सिंचाई पानी की बचत होती है।
3- जमीन : ऊबड़-खाबड़, क्षारयुक्त, बंजर जमीन शुष्क खेती वाली, पानी के कम रिसाव वाली जमीन और अल्प वर्षा की क्षारयुक्त जमीन और समुद्र तटीय जमीन भी खेती हेतु उपयोग में लाई जा सकती है।
4- रासायनिक खाद : फर्टिगेशन से पोषकतत्व बराबर मात्र में सीधे पौधोंकी जडों में पहुंचाऐ जाते हैं, जिसकी वजह से पौधे पोषक तत्वोंका उपयुक्त इस्तेमाल कर पाते हैं तथा प्रयोग किये गए उर्वरकों में होने वाले विभिन्ननुकसान कम होते हैं, जिससे पैदावार में वृद्धि होती है। इस पद्धति द्वारा 30 से 45 प्रतिशत तकरासायनिक खाद की बचत की जा सकती है।
5- खरपतवार : टपक सिंचाई में पानी सीधे फसल की जड़ों में दिया जाता है। आस-पास की जमीन सूखी रहने से अनावश्यक खरपतवार विकसित नहीं होते। इससे जमीन के सभी पौष्टिक तत्व केवल फसल को मिलते हैं।
6- फसल में कीट व रोग का प्रभाव : टपक/इनलाइन पद्धति से पेड़-पौधों का स्वस्थ विकास होता है। जिनमें कीट तथा रोगों से लड़ने कीज्यादा क्षमता होती है। कीटनाशकों पर होने वाले खर्चे में भी कमी होती है।
7- टपक सिंचाई में होने वाला खर्च और कार्यक्षमता : टपक/इनलाइन सिंचाई पद्धति उपयोग के कार" श-जड़ के क्षेत्र को छोड़कर बाकी भाग सूखा रहने से निराई-गुड़ाई, खुदाई, कटाई आदि काम बेहतर ढंग से किये जा सकते हैं। इससे मजदूरी, समय और पैसे तीनों की बचत होती है।
टपक सिंचाई प्रणाली के घटक
टमाटर की टपक सिंचाई
टपक संयन्त्र के प्रमुख भाग निम्नानुसार हैं-
1- हेडर असेंबली
2- फिल्टर्स - हायड्रोसायक्लोन, सैंड और स्क्रीन फिल्टर्स
3- रसायन और खाद देने के साधन - व्हेंचुरी, फर्टिलाइज़र टैंक
4- मेनलाइन
5- सबमेन लाइन
6- वॉल्व
7- लेटरल लाइन (पॉलीट्यूब)
8- एमीटर्स - ऑनलाइन/इनलाइन/मिनी स्प्रिंकलर/जेट्स
हेडर असेंबली
हेडर असेंबली मतलब बाईपास, नॉन रिटर्न वॉल्व, एअर रिलीज़ वॉल्व आदि। टपक सिंचाई का दबाव और गति नियंत्रित करने के लिये बाईपास असेंब्ली का उपयोग किया जाता है।
फिल्टर
पानी में मौजूद मिट्टी के कणों, कचरा, शैवाल (काई) आदि से ड्रिपर्स के छिद्र बंद होने की संभावना रहती है। इस प्रक्रिया में स्क्रीन फिल्टर, सैंड फिल्टर, सैंडसेपरेटर, सेटलिंग टैंक आदि का समावेश होता है। पानी में रेत अथवा मिट्टी होने पर हाइड्रोसाइक्लॉन फिल्टर का उपयोग किया जाना चाहिए। पानी में शैवाल (काई), पौधों के पत्ते, लकड़ी आदि सूक्ष्म जैविक कचरा
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