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होम (घर) / कृषि / फसल उत्पादन / व्यवसायिक फसलों की खेती / सोयाबीन की खेती
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सोयाबीन की खेती
CONTENTS
भूमि का चुनाव एवं तैयारी
उन्नत प्रजातियां
बीज दर
बीजोपचार
कल्चर का उपयोग
बोनी का समय एवं तरीका
अंतरवर्तीय फसलें
समन्वित पोषण प्रबंधन
खरपतवार प्रबंधन
सिंचाई
पौध संरक्षण
रोग
फसल की कटाई एवं गहाई
भूमि का चुनाव एवं तैयारी
सोयाबीन की खेती अधिक हल्की, हल्की व रेतीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है। परंतु पानी के निकास वाली चिकनी दोमट भूमि सोयाबीन के लिये अधिक उपयुक्त होती है। जिन खेतों में पानी रुकता हो, उनमें सोयाबीन न लें।
ग्रीष्मकालीन जुताई 3 वर्ष में कम से कम एक बार अवष्य करनी चाहिये। वर्षा प्रारम्भ होने पर 2 या 3 बार बखर तथा पाटा चलाकर खेत का तैयार कर लेना चाहिये। इससे हानि पहुंचाने वाले कीटों की सभी अवस्थायें नष्ट होंगीं। ढेला रहित और भुरभुरी मिट्टी वाले खेत सोयाबीन के लिये उत्तम होते हैं। खेत में पानी भरने से सोयाबीन की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है अत: अधिक उत्पादन के लिये खेत में जल निकास की व्यवस्था करना आवश्यक होता है। जहां तक सम्भव हो आखरी बखरनी एवं पाटा समय से करें जिससे अंकुरित खरपतवार नष्ट हो सकें। यथा सम्भव मेंढ़ और कूड़ (रिज एवं फरों) बनाकर सोयाबीन बोयें।
उन्नत प्रजातियां
प्रजाति
पकने की अवधि
औसत उपज (क्विंटल/हेक्टर)
प्रतिष्ठा 100-105 दिन 20-30
जे.एस. 335 95-100 दिन 25-30
पी.के. 1024 110-120 दिन 30-35
एम.ए.यू.एस. 47 85-90 दिन 20-25
एनआरसी 7
(अहिल्या-3) 100-105 दिन 25-30
एनआरसी 37 95-100 दिन 30-35
एम.ए.यू.एस.-81 93-96 दिन 22-30
एम.ए.यू.एस.-93 15 90-95 दिन 20-25बीज दर
छोटे दाने वाली किस्में - 28 किलोग्राम प्रति एकड़
मध्यम दाने वाली किस्में - 32 किलोग्राम प्रति एकड़
बड़े दाने वाली किस्में - 40 किलोग्राम प्रति एकड़
बीजोपचार
सोयाबीन के अंकुरण को बीज तथा मृदा जनित रोग प्रभावित करते हैं। इसकी रोकथाम हेतु बीज को थायरम या केप्टान 2 ग्राम, कार्बेडाजिम या थायोफिनेट मिथाइल 1 ग्राम मिश्रण प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये अथवा ट्राइकोडरमा 4 ग्राम / कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलों ग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोयें।
कल्चर का उपयोग
फफूंदनाशक दवाओं से बीजोपचार के प्श्चात् बीज को 5 ग्राम रायजोबियम एवं 5 ग्राम पीएसबी कल्चर प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। उपचारित बीज को छाया में रखना चाहिये एवं शीघ्र बोनी करना चाहिये। घ्यान रहे कि फफूंद नाशक दवा एवं कल्चर को एक साथ न मिलाऐं।
बोनी का समय एवं तरीका
जून के अंतिम सप्ताह में जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय सबसे उपयुक्त है। बोने के समय अच्छे अंकुरण हेतु भूमि में 10 सेमी गहराई तक उपयुक्त नमी होना चाहिये। जुलाई के प्रथम सप्ताह के पश्चात् बोनी की बीज दर 5-10 प्रतिशत बढ़ा देना चाहिये। कतारों से कतारों की दूरी 30 से.मी. (बोनी किस्मों के लिये) तथा 45 से.मी. बड़ी किस्मों के लिये। 20 कतारों के बाद एक कूंड़ जल निथार तथा नमी सरंक्षण के लिये खाली छोड़ देना चाहिये। बीज 2.50 से 3 से.मी. गहरा बोयें।
अंतरवर्तीय फसलें
सोयाबीन के साथ अंतरवर्तीय फसलों के रुप में अरहर सोयाबीन (2:4), ज्वार सोयाबीन (2:2), मक्का सोयाबीन (2:2), तिल सोयाबीन (2:2) अंतरवर्तीय फसलें उपयुक्त हैं।
समन्वित पोषण प्रबंधन
अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद (कम्पोस्ट) 2 टन प्रति एकड़ अंतिम बखरनी के समय खेत में अच्छी तरह मिला देवें तथा बोते समय 8 किलो नत्रजन 32 किलो स्फुर 8 किलो पोटाश एवं 8 किलो गंधक प्रति एकड़ देवें। यह मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर घटाई बढ़ाई जा सकती है। यथा सम्भव नाडेप, फास्फो कम्पोस्ट के उपयोग को प्राथमिकता दें। रासायनिक उर्वरकों को कूड़ों में लगभग 5 से 6 से.मी. की गहराई पर डालना चाहिये। गहरी काली मिट्टी में जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति एकड़ एवं उथली मिट्टियों में 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से 5 से 6 फसलें लेने के बाद उपयोग करना चाहिये।
खरपतवार प्रबंधन
फसल के प्रारम्भिक 30 से 40 दिनों तक खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्यक होता है। बतर आने पर डोरा या कुल्फा चलाकर खरपतवार नियंत्रण करें व दूसरी निदाई अंकुरण होने के 30 और 45 दिन बाद करें। 15 से 20 दिन की खड़ी फसल में घांस कुल के खरपतवारों को नश्ट करने के लिये क्यूजेलेफोप इथाइल 400 मिली प्रति एकड़ अथवा घांस कुल और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये इमेजेथाफायर 300 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव की अनुशसा है। नींदानाशक के प्रयोग में बोने के पूर्व फ्लुक्लोरेलीन 800 मिली प्रति ए
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