गर्मी के मौसम मे दूधिया मशरूम उगायें अच्छी आमदनी पायें
दूधिया मशरूम एक स्वाटिष्ट प्रोटीनयुक्त तथा कम कैलोरी प्रदान करने वाला खाद्य पदार्थ है। इसमे पायी जाने वाली प्रोटीन में आवश्यक अमीनो अम्ल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि वृ़ध्दि और विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी है ताजे मशरुम में पाये जाने वाला प्रोटीन दूघ के प्रोटीन के बराबर होता है व अत्यधिक सुपाच्य होता है। इसके साथ ही यह विटामिन व खनिज लवण का अच्छा स्त्रोत है।
मशरुम में वसा कम व प्रोटीन ज्यादा होता है। अतः यह ह्रदय रोगियो के लिए उपयोगी है। इसमे स्टार्च नहीं होता यह डायबिटीज के मरीजो को फायदा करता है। यह वैक्टीरिया से लड़ले की क्षमता रखता है। तथा ट्यूमर के वृ़ध्दि को रोकता है। शरीर को चावल व गेहूँ से प्रति 340 से 360 कैलोरी क्रमशः उर्जा मिलती है, वहीं मशरूम से सिर्फ 30 कैलोरी ही प्राप्त होती है, यह मोटापा नहीं बढ़ाता है। इसमें शर्करा एवं स्टार्च कम होता है इस कारण इसे ‘डिलाइट आॅफ डाइबेटिक‘ कहा जाता है। इसमें कोलेस्ट्रोल बिल्कुल नहीं होता है जो कि पाचन क्रिया के दौरान विटामिन ‘डी‘ मंे बदल जाता है अतः यह दिल के मरीज के लिए काफी अच्छा होता है। मशरूम मे उपस्थित लौह तत्व पूरी तरह शरीर में उपलब्ध होने की अवस्था में होते हंै जिससे यह रक्ताल्पता (एनीमिया) में बहुत फायदेमंद होते है। इसमें सोडियम व पोटाशियम का अनुपात अधिक होने के कारण उच्च रक्तचाप को सामान्य करता है। इसमें फासफोरस भी पाया जाता है। एक आर्दश भोजन मे ताजा मशरूम (227 ग्राम) खाने से लगभग 70 किलो कैलोरी उर्जा मिलती है। गर्मी के मौसम मेें उगाये जाने वाले मशरूम में दूधिया मशरूम (कैलोसाइबी इंडिका) महत्वपूर्ण है। इसकी खेती अधिक तापमान मेें आसानी से की जा सकती है। दूधिया मशरूम के कवक जाल फैलाव के लिए 250-350 सेल्सियस तथा नमी 80-90 प्रतिशत होनी चाहिए। ऊँचे तापमान (380-400) पर भी यह अच्छा पैदावार देता है । वैज्ञानिक तरीका अपनाकर किसान गर्मी के मौसम मे भी आसानी से इसकी खेती करके अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
माध्यम का चुनाव एवं उपचार:
दूधिया मशरूम को विभिन्न कृषि फसलों से प्राप्त अवशेषों जैस भूसा, पुआल, फरशीबीन के सूखे डंठल व गन्ना की खोई आदि पर आसानी से उगााया जा सकता है। माध्यम नया, सूखा एवं बरसात मे भींगा न हो। इस मशरूम की खेती के लिए भूसा या पुआल का अधिकतर इस्तेमाल किया जाता है। माध्यम को हानिकारक सूक्ष्मजीवियों से मुक्त करने तथा दूधिया मशरूम की वृद्धि हेतु उसे उपयुक्त बनाने के लिये, निम्नलिखित में से किसी एक विधि से उपचारित करके ही इस्तेमाल किया जाता है।
गर्म पानी द्वारा उपचार: इस विधि के अनुसार गेहूँ का भूसा या धान के पुलाव की कुट्टी को काट कर एवं जूट या कपडे़ की छोटी थैलियों में भरकर पानी मं अच्छी प्रकार से कम से कम 12 से 16 घंटे तक डुबोकर रखते हैं। ताकि भूसा या पुआल अच्छी तरह से पानी सोख लें। इसके पश्चात् इस गीले भूसे से भरी थैलियों को उबलते हुए गर्म पानी में 30-40 मिनट तक डुबोकर रखते हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि पानी का तापमान 40 मिनट तक 800-900 सेल्सियस तक बना रहना चाहिए। भूसा डालने से पहले फर्श को धो कर उस पर 2 प्रतिशत फार्मेलीन के घोल का छिडकाव करें। इस प्रकार से उपचारित माध्यम बीजाई के लिये तैयार करें।
रासायनिक उपचार: गर्म पानी उपचार विधि को बडे़ स्तर पर पर अपनाने में अधिक खर्च आता है अतः विकल्प के रूप में रासायनिक विधि को अपनाया जा सकता जिसका तरीका निम्नलिखित है।
क. किसी सिमेंट के नाद या ड्रम में 90 लीटर पानी लें तथा उसमे 10 किलोग्राम भूसा या पुआल (माध्यम) भिगो दें।
ख. एक बाल्टी मे 10 लीटर पानी लें तथा उसमें 10 ग्राम बाविस्टीन व 5 मि0ली0 फार्मेलीन मिलायें। इस घोल को ड्रम में भिगोये गये माध्यम पर डालंे तथा ड्रम को पाॅलिथीन से ढ़ॅककर उस पर वजन रख दें।
ग. 12-16 घंटे बाद ड्रम से माध्यम को बाहर निकाल कर साफ फर्श पर फेला दे। ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाये। प्राप्त गीला माध्यम बीजाई के लिये तैयार है।
बीजाई
उपर बताई गई किसी एक विधि से माध्यम को उपचारित कर उसमें 4-5 प्रतिशत (गीले माध्यम के वजन के अनुसार) की दर से बीज मिलायें यानि एक किलोगा्रम गीले माध्यम मे 40-50 ग्राम बीज। सतह विधि से ही बीजाई करना उत्तम रहता है । सतह में बजाई करने हेतु पहले छिद्रयुक्त (4-5) पाॅलीप्रोइलिन (पी.पी.) के बैग (14-16 से0मी0 चैडा तथा 20 से0मी0 ऊँचा) में एक परत माध्यम की बिछाये फिर उसके उपर बीज बिखेर दें। उसके ऊपर फिर से माध्यम की परत डालें तथा फिर बीज डालें। इस प्रकार 2-3 सतह में बीजाई की जा सकती है। बैग मे करीब 2-3 किलो ग्राम गीले (उपचारित) भरा जाता । छिटकावाॅ विधि से भी बीजाई की जा सकती है। बीजित बैगों को एक अं
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