शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

रविवार, 5 नवंबर 2017

प्रमुख रोग एवं नियंत्रण उकठा / उगरा रोग :-


प्रमुख रोग एवं नियंत्रण उकठा / उगरा  रोग :-
लक्षण
  • उकठा चना की फसल का प्रमुख रोग है
  • उकठा के लक्षण बुआई के 30 दिन से   फली लगने तक दिखाई देते है 
  • पौधों का झुककर मुरझाना
  • विभाजित जड़ में भूरी काली धारियों का दिखाई देना 
नियंत्रण विधियाँ :-  





  • चना की बुवाई अक्टूबर माह के अंत में या नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में करें
  • गर्मी के मौसम (अप्र - मई) में खेत की गहरी जुताई करें
  • उकठा रोगरोधी जातियां लगाऐं जैसे
  • देसी चना - जे.जी. 315, जे.जी. 322, जे.जी. 74, जे.जी. 130, जाकी 9218, जे.जी. 16, जे.जी. 11, जे.जी. 63, जे.जी. 12, काबुली - जे.जी.के. 1, जे.जी.के. 2, जे.जी.के. 3
  • काबुली चना - जे.जी.के. 1, जे.जी.के. 2, जे.जी.के. 3 ऽ बीज बोने से पहले कार्बाक्सिन 75ःूच फफूंद नाषक की 2 ग्राम मात्रा प्रति किले बीज की दर से करें ।
  • सिंचाई दिन में न करते हुए शाम के समय करें ।
  • नियंत्रण विधियाँ:- 
    • फसल को शुष्क एवं गर्मी के वातावरण से बचाने के लिए बुआई समय से करनी चाहिए।
    • अप्रेल - मई में खेत को गहरा जोतकर छोड़ देने से कवक के बीजाणु कम हो जाते है।
    • ट्राईकोडर्मा 5 किलो ग्राम/ हे. 50 किलो ग्राम पकी गोबर की खाद के साथ मिलाकर खेत में डाले।
    प्रमुख कीट एवं नियंत्रण चना फलीभेदक
    चने की फसल पर लगने वाले कीटों में फली भेदक सबसे खतरनाक कीट है। इस कीट क प्रकोप से चने की उत्पादकता को 20-30 प्रतिषत की हानि होती है। भीषण प्रकोप की अवस्था में चने की 70-80 प्रतिषत तक की क्षति होती है।
    • चना फलीभेदक के अंडे लगभग गोल, पीले रंग के मोती की तरह एक-एक करके पत्तियों पर बिखरे रहते हैं
    • अंडों से 5-6 दिन में नन्हीं-सी सूड़ी निकलती है जो कोमल पत्तियों को खुरच-खुरच कर खाती है।
    •  सूड़ी 5-6 बार अपनी केंचुल उतारती है और धीरे-धीरे बड़ी होती जाती है। जैसे-जैसे सूड़ी बड़ी होती जाती है, यह फली में छेद करके अपना मुंह अंदर घुसाकर सारा का सारा दाना चट कर जाती है।
    •  ये सूड़ी पीले, नारंगी, गुलाबी, भूरे या काले रंग की होती है। इसकी पीठ पर विषेषकर हल्के और गहरे रंग की धारियाँ होती हैं।
    समेकित कीट प्रबंधन
    (क) यौन आकर्षण जाल (सेक्स फेरोमोन ट्रैप)ः 
    इसका
     प्रयोग कीट का प्रकोप बढ़ने से पहले चेतावनी के रूप में करते हैं। जब नर कीटों की संख्या प्रति रात्रि प्रति टैª 4-5 तकपहुँचने लगे तो समझना चाहिए कि अब कीट नियंत्रण जरूरी। इसमें उपलब्ध रसायन (सेप्टाकी ओर कीट आकर्षित होते है।और विशेष रूप से बनी कीप (फनलमें फिसलकर नीचे लगी पाॅलीथीन में एकत्र हो जाते है।
    (). सस्य क्रियाओं द्वारा नियंत्रण 
    1. 
    गर्मी में खेतों की गहरी जुताई करने से इन कीटों की सूड़ी के  कोषित मर जाते है। 2. फसल की समय से बुआई करनी चाहिए  
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    उर्वरक गुण नियंत्रण प्रयोगशालायें


    उर्वरक गुण नियंत्रण प्रयोगशालायें
    उर्वरक गुण नियंत्रण प्रयोगशालाओं की स्थापना एवं उनकी कार्य प्रणाली
    स्थापना/उद्देश्य:-
    • उर्वरक विभिन्न फसलों के उत्पादन में प्रमुख आदान है। उर्वरकों की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए उर्वरक को आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के अंतर्गत रखा गया है । उर्वरक (नियंत्रण) आदेश 1985 के अंतर्गत प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई है
    कार्यस्थल:- 
    • सबसे पुरानी उर्वरक प्रयोगशाला जबलपुर में स्थापित की गई बाद में ग्वालियर, इन्दौर एवं भोपाल में भी उर्वरक प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई।
    अमाला:- 
    • सहायक रसायन विशेषज्ञ अधिकारी प्रयोगशाला के प्रभारी रहते हेै एसएडीओ स्तर के 4 अधिकारी जो विश्लेषक के पदों पर नत्रजन, स्फुर, पोटाश विश्लेषण का कार्य करते हैं, एक एकाउन्टेन्ट एक सहायक ग्रेड-3 एव् ां एक भृत्य, एक प्रयोगशाला परिचालक के पद भी सवीकृत है एवं उन पदों पर कर्मचारी कार्य कर रहे है ।
    बजट:-
    • ग्लाय वेयर एवं रसायन खरीदी हेतु प्रति प्रयोगशाला अनुमानित 2.00 लाख रू  पयों का आवंटन तथा अमले के वेतन हेतु अनुमानित 7.00 लाख का आवंटन दिया जाता है ।
    उर्वरक नमूने:- 
    • प्रति प्रयोगशाला अनुमानित 1200 नमूने वर्ष में जांच ह ेतु प्राप्त होते है । नमूनों में प्रमुखत: यूरिया, डीएपी, 12:32:16 पोटाश, सीएएन 15:15:15, एसएसपी आदि उर्वरकों के नमूने जिले के उर्वरक निरीक्षकों स े उप संचालक कृषि के माध्यम से संबंधित उर्वर क गुण नियंत्रण प्रयोगशाला को भेजा जाता है । नमूना लेने समय 'पी' फार्म करना होता है । तीन थैलियों में नमूना लिया जाता है । एक प्रयोगशाला को एक विक्रेता की दुकान#सोसाईटी में रखी जाती है, एक थैली गार्ड नमूना की उप संचालक कृषि कार्यालय में रखी जाती है, 7 दिवस के अंदर उर्वरक नमूना प्रयोगशाला में भेजने का बंधन एफ.सी.ओ. में दिया गय् ाा ह ै । प्रयोगशाला परीक्षण कर उर्वरक नमूनों के परिणाम प्रपत्र एल.4 में 60 दिनों के भीतर संबंधित उप संचालक कृषि को भेज दिया जाता है । अमानक परिणाम की दशा में उप संचालक कृषि स्तर से एफ.सी. ओ. को धाराओं की तहत प्रकरण पंजीबध्द होकर फैसला होता है ।
    प्रयोगशालावार उर्वरक नमूनों का वितरण:-
    संयुक्त संचालक कृषि (प्रयोगशाला):-
    • समस्त 4 प्रयोगशालाओं को संचालनालय स्तरपर समस्त संयुक्त संचालक कृषि उर्वरक, नियंत्रण एवं रिपोर्ट आदि रखते है ।
    रिपोर्ट संकलन  :- 
    • ए.सी.एस. जबलपुर, इन्दौर, ग्वालियर एवं भोपाल द्वारा प्रपत्र ''एल'' में उर्वरक विश्लेषण रिपोर्ट संबंधित जिलों को भेजी जाती है । संचालनालय स्तर पर संयुक्त संचालक कृषि (फर्टि.) द्वारा साप्ताहिक गोस वारा, कम्पनीवार, उर्वरकवार, जिलेवार मानक अथवा अमानकवार बनाया जाकर शासन को प्रति मंगलवार भेजकर समीक्षा करायी जाती है । इससे अमानक स्तर पर उर्वरक बनाने वाली अथवा प्रदाय करने वाली कम्प् ानियों परनिगरानी रखी जाकर कृषकों को उत्तम गुणवत्ता वाला उर्वरक वितरण में प्रयोगशाला चेक प्वाइंट का कार्य करती रहती 
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    मिट्टी परीक्षण योजना


    मिट्टी परीक्षण योजन
    योजना के प्रभारी रहने की समय सीमा- निरन्तर
    कार्य का क्षेत्र-

    सम्पूर्ण मध्यप्रदेश बेहतर फसल उत्पादन एवं मृदा स्वास्थ्य हेतु संन्तुलित पौध पोषण परम आवश्यक होता है उचित पौध पोषण हेतु खेत की मिट्टी में उपलब्ध विभिन्न प्रमुख एवं गौण पोषक तत्वों की उपस्थित मात्रा की जानकारी मिट्टी परीक्षण द्वारा सुलभ होती है । प्राप्त मिट्टी परीक्षण परिणामो के आधार पर कृषक बन्धु उर्वरको का सन्तुलित मात्रा में उपयोग कर अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते है ।

    मिट्टी परीक्षण क्या है-

    खेत की मिट्टी में पौधो की समुचित वृध्दि एवं विकास हेतु आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्ध मात्राओं का रासायनिक परीक्षणों द्वारा आंकलन करना साथ ही विभिन्न मृदा विकास जैसे मृदा- लवणीयता, क्षारीयता एवं अम्लीयता की जांच करना मिट्टी परीक्षण कहलाता है ।
    मिट्टी परीक्षण की आवश्यकत
    पौधो की समुचित वृध्दि एवं विकास के लिये सर्वमान्य रूप से सोलह पोषक तत्व आवश्यक पाये गये है । यह अनिवार्य पोषक तत्व है। कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्निशियम एवं सल्फर ( मुख्य या अधिक मात्रा मे लगने वाले आवश्यक पोषक तत्व ) इन पोषक तत्वों मे से प्रथम तीन तत्वों को पौधे प्राय: वायु व पानी से प्राप्त करते है तथा शेष 13 पोषक तत्वों के लिये ये भूमि पर निर्भर होते है । सामान्यत: ये सभी पोषक तत्व भूमि में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध रहते है । परन्तु खेत में लगातार फसल लेते रहने के कारण मिट्टी से इन सभी आवश्यक तत्वों का ह्ास निरन्तर हो रहा है । असन्तुलित पौध पोषण की दशा में फसलो की वृध्दि समुचित नहीं हो पाती तथा पौधो के कमजोर होने एवं रोग व्याधि, कीट आदि से ग्रसित होने की सम्भावना अधिक रहती है । परिणामस्वरूप फसल उत्पादन कम होता है इसके अतिरिक्त उर्वरक भी काफी महंगे होते जा रहे है। अत: इन पोषक तत्वों को खेत में आवश्यकतानुरूप ही उपयोग करना जिससे खेती लाभदायक बन सकती है । खेतो में उर्वरक डालने की सही मात्रा की जानकारी मिट्टी परीक्षण द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है । अत: मिट्टी परीक्षण उर्वरकों के सार्थक उपयोग एवं बेहतर फसल उत्पादन हेतु नितान्त आवश्यक है ।
    मिट्टी परीक्षण के उद्देश्य-
    मिट्टी परीक्षण सामान्यतया निम्न उद्देश्यो की पूर्ति के लिये किया जाता है -
    1. मिट्टी में पोषक तत्वों के स्तर की जांच करके फसल एवं किस्म के अनुसार तत्वों की सन्तुलित मात्रा का निर्धारण कर खेत में खाद एवं उर्वरक मात्रा की सिफारिश हेतु ।
    2. मृदा अम्लीयता, लवणीयता एवं क्षारीयता की पहचान एवं सुधार हेतु सुधारको की मात्रा व प्रकार की सिफारिश कर इन जमीनो को कृषि योग्य बनाने हेतु महत्वपूर्ण सलाह एवं सुझाव देना ।
    3. फल के बाग लगाने के लिये भूमि की उपयुक्तता का पता लगाना ।
    4. मृदा उर्वरता मानचित्र तैयार करने के लिये । यह मानचित्र विभिन्न फसल उत्पादन योजना निर्धारण के लिये महत्वपूर्ण होता है तथा क्षेत्र विशेष में उर्वरक उपयोग संबंधी जानकारी देता है ।
    मिट्टी का नमूना एकत्र करना-
    मिट्टी परीक्षण के लिये सबसे महत्वपूर्ण होता है कि मिट्टी का सही नमूना एकत्र करना । इसके लिये जरूरी होता है कि नमूना इस प्रकार लिया जाये कि वह जिस खेत या क्षेत्र से लिया गया हो उसका पूर्ण प्रतिनिधित्व करता हो । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु मिट्टी के प्रतिनिधि नमूने एकत्र किये जाते है । प्रतिनिधि नमूना लेने के लिये ध्यान दे कि -
    1- नमूना लेने से पूर्व खेत में ली गई फसल की बढवार एक ही रही हो ।
    2- उसमें एक समान उर्वरक उपयोग किये गये हो ।
    3- जमीन समतल व एक ही हो तो ऐसी स्थिति में पूरे खेत से एक ही संयुक्त या प्रतिनिधि नमूना ले सकते है ।
    इसके विपरीत यदि खेत में अलग-अलग फसल ली गई हो । भिन्न-भिन्न भागो में अलग-अलग उर्वरक मात्रा डाली गई हो । फसल बडवार कही कम, कही ज्यादा रही हो । जमीन समतल न होकर ढालू हो तो इन परिस्थितियो में खेत के समान गुणो वाली सम्भव इकाईयो में बांटकर हर इकाई से अलग-अलग प्रतिनिधि नमूना लेना चाहिये । नमूना सामान्यत: फसल बोने के एक माह पहले लेकर परीक्षण हेतु भेजना चाहिये ताकि समय पर परिणाम प्राप्त हो जायें एवं सिफारिश के अनुसार खाद उर्वरको का उपयोग किया जा सके ।

    नमूना एकत्रीकरण हेतु आवश्यक सामग्री

    खुरपी, फावडा, बाल्टी या ट्रे, कपडे एवं प्लास्टिक की थैलियां , पेन, धागा, सूचना पत्रक , कार्ड आदि ।


    प्रतिनिधि नमूना एकत्रीकरण विधि-

    1- जिस खेत में नमूना लेना हो उसमें जिग-जैग प्रकार से घूमकर 10-15 स्थानो पर निशान बना ले जिससे खेत के सभी हिस्से उसमें शामिल हो सकें ।
    2- चुने गये स्थानो पर उपरी सतह से घास-फूस, कूडा करकट आदि हटा दे।
    3- इन सभी स्थानो पर 15 सें.मी. (6 -9 इंच) गहरा वी आकार का गङ्ढा खोदे । गड्डे को साफ कर खुरपी से एक तरफ उपर से नीचे तक 2 से.मी. मोटी मिट्टी की तह को निकाल ले तथा साफ बाल्टी या ट्रे में डाल ले ।
    4- एकत्रित की गई पूरी मिट्टी को हाथ से अच्छी तरह मिला लें तथा साफ कपडे पर डालकर गोल ढेर बना लें । अंगूली से ढेर को चार बराबर भागो की मिट्टी अलग हटा दें । अब शेष दो भागो की मिट्टी पुन: अच्छी तरह से मिला लें व गोल बनाये । यह प्रक्रिया तब तक दोहराये जब तक लगभग आधा किलों मिट्टी शेष रह जायें । यही प्रतिनिधि नमूना होगा ।
    5- सूखे मिट्टी नमूने को साफ प्लास्टिक थैली में रखे तथा इसे एक कपडे की थैली में डाल दें । नमूने के साथ एक सूचना पत्रक जिस पर समस्त जानकारी लिखी हो एक प्लास्टिक की थैली में अन्दर तथा एक कपडे की थैली के बाहर बांध देवें ।
    6- अब इन तैयार नमूनों को मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला भेजे ।
    मिट्टी जांच संबंधी सूचना पत्रक

    निम्न जानकारी लिखा हुआ सूचना पत्रक नमूनो के साथ रखे एवं उपर बांधे-


    कृषक का नाम ------------


    पिता का नाम--------------


    ग्राम/मोहल्ला--------------

    डाकघर------------------
    विकासखण्ड/तहसील----------
    जिला------------------
    खेत का खसरा नम्बर/सर्वे------------
    पहचान-----------------------
    सिंचित/असिंचित-----------------
    पहले ली गई फसल एवं मौसम----------
    आगे ली जाने वाली फसल एवं-----------
    मौसम-
    नमूना लेने वाले का नाम/हस्ता0----------
    एवं दिनांक ----------------------
    मिट्टी सबंधी अन्य विशेष समस्या----------
    विशिष्ट परिस्थितियो हेतु नमूना एकत्रीकरण-
    लवण प्रभावित भूमि से मिट्टी नमूना लेने के लिये 90 से.मी. गहरा गड्डा खोदकर एक तरफ से सपाट कर ले । फिर वहा से उपर से नीचे की ओर 0-15से.मी., 15-30से.मी., 30-60 से.मी. एवं 60से 90 से.मी. की परतो से आधा-आधा किलो मिट्टी खुरच कर अलग-अलग थैलियो में रखकर व परतो की गहराई लिखकर सूचना पत्रक में स्थान का भू-जल स्तर, सिंचाई का स्त्रोत आदि जानकारी भी लिखकर मिट्टी नमूनो को प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु भेजें ।
    फलदार पौधे लगाने के लिये 2 मी. तक नमूना लेना चाहिये क्योंकि वृक्ष जमीन की गहराई की परतों से अपना पोषण प्राप्त करते है । साथ ही जमीन में कैल्शियम, कार्बोनेट की मात्रा फलदार पौधो की बढवार के लिये महत्वपूर्ण होती है । 2 मी. के गड्डे में एक तरफ सपाट करके 15,30,60,90,120,150,एवं 180 से.मी. की गहराई पर निशान बनाकर अलग-अलग परतो से अलग- अलग मिट्टी नमूना (1/2 किलो) एकत्र करें । सूचना पत्रक में अन्य जानकारियो के साथ परतो की गहराई भी लिखे । इस प्रकार तैयार नमूनों को परीक्षण हेतु प्रयोगशाला भेजे ।
    मिट्टी नमूना का प्रयोगशाला में विश्लेषण एवं परिणाम-
    एकत्रित किये गये नमूनो को किसान भाई अपने ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी की मदद से जिले की निकटतम मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओ में परीक्षण हेतु भिजवाये ।
    प्रयोगशालाओ में सामान्यत: मिट्टी परीक्षण कार्बनिक कार्बन, मृदा पी.एच.मान ( अम्लीयता, क्षारीयता, उदासीनता आदि) वैधुत चालकता, उपलब्ध नत्रजन , स्फुर एवं पोटाश आदि का स्तर जानने के लिये किये जाते है तथा प्राप्त परिणामों के आधार पर पोषक तत्वों के निम्नस्तर (कमी)
    मध्यम स्तर (पर्याप्त) एवं उच्च स्तर (अधिकता) के हिसाब से आगे बोयी जाने वाली फसल के लिये उर्वरक एवं खादी को दी जाने वाली मात्राओ की सिफारिश की जाती है । इस आधार पर कृषक, उर्वरको का सार्थक उपयोग कर अच्छा फसल उत्पादन प्राप्त कर सकते है तथा उर्वरको पर खर्च किये गये पैसों का समुचित उपयोग कर सकते है । सूक्ष्म पोषक तत्वों के विश्लेषण हेतु नमूना सावधानीपूर्वक एकत्रित कर तथा विशिष्ट रूप से यह अंकित कर भेजे कि मृदा में सूक्ष्म तत्व विश्लेषण भी चाहते है ।
    नमूना एकत्रिकरण के समय सावधानियां-
    - जहां खाद का ढेर रहा हो वहां से नमूना न लें ।


      - पेडों , मेढो, रास्तो के पास से नमूना न ले ।

      - साफ औजारो (जंग रहित) तथा साफ थैलियों का उपयोग करें ।

      - नमूनों के साथ सूचना पत्रक अवश्य रखें ।

    याद रखे कि खेत का मिट्टी परीक्षण उतना ही आवश्यक है जितनी कि स्वास्थ्य के लिये चिकित्सक से जांच करवाते रहना । इस प्रत्येक तीन वर्षो में अनिवार्य रूप से दोहराते रहना चाहिये।

    निर्धारित शुल्क

    मिट्टी परीक्षण हेतु शासन द्वारा निर्धारित रियायती दर- शासन द्वारा किसानो के खेतो की मिट्टी के सूक्ष्म तत्व विश्लेषण करने हेतु सामान्य कृषको के लिये रू. 40/- प्रति नमूना तथा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये रू. 30/- प्रति नमूना शुल्क निर्धारित किया गया है ।
    मुख्य तत्वों के विश्लेषण हेतु सामान्य कृषको के लिये रू.5/- प्रति नमूना तथा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कृषको के लिये रू0 3/- प्रति नमूना निर्धारित किया गया ।
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    खरीफ फसल- अरहर


     सिफारिशें
    खरीफ फसल- अरहर
    1.  उर्वरक को 5 से 7 से.मी. जमीन से नीचे डाले।
    2.  सीड ड्रिल या दुफन की सहायता से उर्वरक डालें।
    3.  20 कि.ग्रा. नत्रजन 60 कि.ग्रा. फास्फोरस को बेसल मात्रा में मिलाएँ।
    4.  उपरोक्त उर्वरक की मात्रा 125 कि.ग्रा. डी.ए.पी. से पूरी हो जाती है।
    5.  अगर भूमि में जस्ते की कमी हो तो जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. हल्की मिट्टी और 50 कि.ग्रा. भारी मिट्टी में मिलाए।
    6.  उपज बढ़ाने के लिए एवं जड़ों को मजबूत करने के लिए 20 कि.ग्रा/ हे की दर से सल्फर डाले।

    1.  कुल्पा या डोरा चला के कतारों के बीच के खरपतवार नाश करें।
    2.  हाथ से उखाड़कर या खुरपी चलाकर पौधों के बीच के नींदा भी नष्ट करें।
    3.  बोनी के 25 से 30 दिन के बाद पहली निदाई एवं 45-50 दिन के पश्चात दूसरी निदाई करें।
    4.  यदि वर्षा में कमी हो तो मल्च डालकर या मिट्टी चढ़ाकर सतह की नमी को संरक्षित करें।

    1.  इस फसल को सामान्यत: सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
    2.  एक सिंचाई उपलब्ध होने पर फूल आने पर सिंचाई करें।
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     फसल - सोयाबीन
     उर्वरक प्रबंधन
    यदि मिट्टी के परीक्षण मान किसान के पास न हो तो अच्छी उपज के लिए निम्नलिखित उर्वरक डालना चाहिए:


  • 30 कि.ग्रा/हे. नाइट्रोजन या 74 कि. ग्रा/हे. यूरिया, 60-80 कि.ग्रा/हे. फॉस्फोरस पेन्टा आक्साइड, 20 कि.ग्रा/हे. पोटॉश। अन्य पोषक तत्वों हेतू निम्नलिखित सलाह दी जाती है:
  • यदि मिट्टी में सल्फर की कमी है तो 20-40 कि.ग्रा/हे. सल्फर ( सिंगल सुपरफास्फेट या परमफॉस - या 2 से 2.5 कि.ग्रा/हेजिप्सम
  • हल्की मिट्टी के लिए जिंक की कमी में 25 कि.ग्रा/हे. जिंक सल्फेट डाले और मध्यम से भारी मिट्टी के लिए 50 कि.ग्रा/ हे जिंक सल्फेट डाले।
  • अगली 6 फसलों के लिए जिंक सल्फेट पर्याप्त मात्रा में हो जाती है
  • उर्वरक का उपयोग 5 से.मी. नीचे और बीज से दूर करना चाहिए जिससे बीज का सीधा संपर्क खाद से न हो।
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